योग का अर्थ हे जोड़ना हमारे आत्मा के साथ जुड़ना, अपने अस्तित्व से सम्बद्ध स्थापित करना , हमारी भीतर की चेतना को विश्वचेतना के साथ जोड़ना
योग से हमारा सम्बन्ध हमारी आत्मा के साथ होता ह,| योग से हमारी ही भीतर की प्रकृति के साथ हम समरस होते है |
सर्व सामान्य मनुष्य शरीर की प्रधानता में जीता हे योग से हमारे शरीर से आत्मा की यात्रा होती तो बाद में हम आत्मा के प्रधानता और आत्मा के प्रभाव में जीते हे |
योग करने वाला व्यक्ति का जीवन भी सामान्य मनुष्य जैसा ही होता हे लेकिन फर्क यह होता हे की वह प्रत्येक पल होश और जागृत रहकर जीता हे , जीवन में हर एक वस्तुओ का उपभोग भी करता हे तो वह योग के साथ करता हे और संतुलित रहता हे |
योग का उद्देश्य
योग का उद्देश्य सिर्फ शारीरिक स्तर पर ही नहीं है, उनका उदेश आत्मा के स्तर पर है। जब हम समग्र योग करते है तो हम योगमय होते है और धीरे धीरे आत्माभिमुख याने अंतर्मुखी होते है और योग का सही अर्थ का पता चलता हे|
शारीरक स्वाथ्य प्रथम पादन है ताकि आगे की यात्रा सरल बनी रहे, केवल शरीर सुंदर , सुडोल बनाने केलिए योग करना मनुष्य के हित में नहीं है , यह योग का उद्देश्य नहीं हे ऐसा करने से उलटा हम शरीरकी प्रधानता देते है जो योग के उदेश्य की विरुद्ध है |
योग में आत्मा को प्रधानता होती हे, वास्तव में शारीरिक और मानसिक लाभ तो योग के बायप्रोडक्ट है |
योगासन से शरीर स्वस्थ, लचीला और सवेंदशील बनता है, लेकिन वास्तव में यह योग की पूर्व तैयारी मात्र है |
शरीर भाव से उठकर आत्मा भाव में जीना ही योग का उद्देश्य है |
आत्मभाव से व्यक्ति के आचरण, विचार एवं व्यवहार सुनियंत्रित हो जाते है | जीवन की सब समस्या और रोग का सम्बन्ध शरीर के साथ होता हे, जब योग करके आत्मा भाव में जीते है तो शरीर की समस्या और रोग तो ऐसे ही दूर हो जाते हे लेकिन सिर्फ वह दूर करना ही उद्देश्य नहीं है योग का मूल उद्देश्य आत्मभाव बढ़ाना है |
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सन्दर्भ “योग से समग्र योग” सचित्र प्रदर्शनी
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