आपका 'चित्त' आपके घर के आईने के समान होता है। आप आपके घर के आईने को सदैव स्वच्छ रखते हो, ताकि आपका चेहरा स्पष्ट से स्पष्ट दिख सके। लेकिन अपने 'चित्त' रूपी आईने को स्वच्छ नहीं करते। अगर आपका चित्तरूपी आईना भी स्वच्छ हो, तो आप उस चित्त से परमात्मा की अनुभूति कर सकते हैं। यानी शरीरधारी परमात्मा को देखने की नहीं, चित्त से अनुभव करने की बात है। यह बात हमारा शरीर और बुद्धि नहीं जानती लेकिन हमारी आत्मा जानती है। इसीलिए शरीरधारी परमात्मा के सामने आने पर शरीर की आँखें आत्मा बंद कर देती है, और आत्मा की आँख खुलती है। और यह आत्मा को कहना नहीं पड़ता, क्योंकि शरीर शरीरधारी परमात्मा को भले ही न पहचाने, आत्मा पहचानती है। क्योंकि आत्मा यह जानती है, कि परमात्मा देखने के नहीं, अनुभूति लेने के लिए होता है। इस प्रकार से हम जान सकते हैं, कि शरीरधारी परमात्मा हमारे सामने आने पर आँखें स्वयं ही बंद हो जाती है, और परमात्मा के सान्निध्य में अच्छा लगता है।
आज हमारी स्थिति ऐसी है कि जो बीस साल पहले एक बच्चा खो गया था, उसे हम खोज रहे हैं बीस साल पुरानी फोटो को लेकर। अरे बाबा, अब वह बच्चा बीस साल का युवक हो गया होगा। उस युवक की बीस साल पुरानी फोटो से उसे अब पहचाना नहीं जा सकता है। आज अगर उसे खोजना है, तो उसकी आज की फोटो चाहिए। वैसे ही परमात्मा को हम खोज रहे हैं। हजारों साल की पुरानी फोटो लेकर तो वह कैसे मिलेगा ? आज भी परमात्मा होगा, वह आज के आधुनिक युग के अवतार में होगा, तभी तो वह आज होगा। अब प्रश्न है, उसे खोजे तो कैसे खोजे ? बस एक ही मार्ग है। वह है, जिस शरीरधारी के सामने जाने से ही आँखें बंद हो जाएँ और आत्मा की आँख खुल जाए और आत्मा परमात्मा की अनुभूति करने लगे, बस तो अब खोज बंद करके उस अनुभूति को ही पकड़ लो। तो आत्मा एक शांति का अनुभव करने लग जाएगी। और फिर अपनी आत्मा को ही गुरु बनाओ, क्योंकि आगे का मार्गदर्शन परमात्मा उसी के 'माध्यम' से कराएगा।
हम समाज में देखते हैं कि 'सी. आई.डी. पोलीस' आते हैं। चुपचाप आते हैं, परिस्थिति की जानकारी प्राप्त करते हैं, और स्वयम् के आने का एहसास भी किसी को नहीं होने देते। और सारी परिस्थिति का आकलन करके रिपोर्ट देते हैं। और जब रिपोर्ट आती है, तब हमें पता चलता है, कि समाज में इस स्थान पर पोलीस 'बिना ड्रेस' (बिना वर्दी) के आए थे और सारी जाँच करके चले गए। और हम इसलिए नहीं पहचान सके, क्योंकि वे पोलीस की ड्रेस में नहीं थे। हम पोलीस को पहचान नहीं सकते और केवल 'ड्रेस' को पहचानते हैं। इसी कारण बिना ड्रेस के पोलीस को समाज पहचान ही नहीं सका। ठीक इसी प्रकार, परमात्मा के माध्यम भी ऐसे ही आते हैं। उन पर 'परमात्मा की ड्रेस' नहीं होती। वे सामान्य मनुष्य के रूप में आते हैं, और चले जाते हैं, और समाज पहचान ही नहीं पाता। इसी लिए परमात्मा के माध्यमों को उनके जीवनकाल के बाद ही जाना जाता है। बिना ड्रेस के पोलीस भले ही ड्रेस पहने न हो, तो भी वे भीतर से 'पोलीस' ही होते हैं। ठीक उसी प्रकार से, परमात्मा के माध्यम परमात्मा का चोला पहने न हो, तो भी वे भीतर से 'परमात्मा' ही होते हैं। सी.आई.डी. पोलीस जैसी अपनी पहचान छुपाते हैं, ठीक उसी प्रकार से परमात्मा के माध्यम भी अपनी पहचान छुपाते हैं। अब तो बाहरी ड्रेस से, बाहरी आवरण से तो पहचाना नहीं जा सकता। पहचाना जा सकता है, तो उनके आभामंडल से, उनके ऑरा से, उनके भीतर से बहने वाले चैतन्य से । वह चैतन्य तो उनके शरीर से सदैव बहते ही रहता है। यही उनकी पहचान है। अब अगर आपकी आत्मा पवित्र हो, और चित्त शुद्ध हो, तो ही उस चैतन्य को अनुभव कर सकते हो।
- आपका बाबास्वामी (सानिध्य)
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