प्राकृतिक औषधीय वनस्पतिया एवमं गव्यसे निर्मित दीपगंध
समर्पण आश्रम सौराष्ट्रमे आयी हुई कामधेनु गौशालाकी चैतन्यपूर्ण गीर गायोका गोबर साथ कपूर, अजवाइन, तील, हवनकाष्टका पावडर और तेल बैसे प्राकृतिक द्रव्योके मिश्रणसे दीपगंध धूपकी टीकीया (कंडा) बनाय जाती है। स्वास्थ्य के लिए हानिकारक कोइ केमीकल के कत्रिम सुगंध डाली हुई नही है ये पूर्णतः प्राकृतिक है।
दीपगंध एक कंडा लेकर उसके दो भाग करे और आधा कडा दिपक की जयोतसे जलाने से शुरू होता है। और आधा कंडा आधे घंटे तक जलता रहता है। दीपगंघ बनाने के पीछे गौशालाको आत्मनिर्भर करने का है शुध्य भाव है और साधको द्वारा निर्माण होता है।
दीपगंध एक उपयोग अनेक :
• दीपगंध जलाने से नीकलता धुआ और विशिष्ट सुगंध वातावरणमें रहे हानिकारक सुक्ष्म जीवाणुं (बेकटेरीया) का दूर करके शुध्य बनाती है।
• दीपगंध संतुलन, स्वास्थ्य और ध्यान साधनाके लिए अनुकुल वातावरण निर्माण हो सकता है
• दीपगंध सुगंध अरोमा थेरापीकी तरह चिंता, तनाव दूर कर मनकी शांति अकाग्रता, उत्साह प्रदान कर उससे प्रफुलित बना शकती है।
• दीपगंध से चक्रका शुध्धिकरण हो सकता है T
• हिलर और रेकी मास्टर चक्रके शुध्धि के लिए दीपगंधका उपयोग करते है
• दीपगंध वास्तुदोष, ग्रहदोष, नकारत्मक शक्तिओं और बाधित उर्जा दूर करके वातावरण को पवित्र तथा सकारात्मक बना सकता है l
• नकारत्मकता दूर करनेवाला खडा नमक गुलाबकी पंखुडी जैसे माध्यमो से भी से बचा सकता है। ज्यादा सकारत्मकता निर्माण करता है।
• नकारत्मकता दूर करनेवाला खडा नमक गुलाबकी पंखुडी जैसे माध्यमो से भी ज्यादा सकारत्मकता निर्माण करता है।
• कफ जन्य और वायरल इन्फेकशनके दीपगंधकी राख से रोगोमें दीपगंध पर एक लोंग रखकर धूप करने से राहत मिल शकती है। से है
• स्वायनफलु, डेंग्यु के प्रभाव से बचने के लिए दीपगंध एक इलायची, राय, नमक रखकर धूप करने से संक्रामक जीवाणुको दुर करने में उपयोगी हो शकता हैा
• दीपगंध प्राकृतिक द्रव्योके औषधिय गुण अग्नि के द्वारा हवामां फेलते है जो सास जरीए शरीरमें जाकर फेफड़े, होजरी, श्वसनतंत्र और रुधिराभिसरणमें शुध्धिकरणकी प्रक्रियामें महत्वपूर्ण कार्य करता है जीससे शारिरीक-मानसिक तंदुरस्ती में सहायता मीलती है।
• कपडे की अलमारीमें और रसोइघरमें दीपगंधके कुछ टुकड़े रखनेसे रोगजन्य कीटक तीलबटे, छीपकली, मकड़ी आदी से राहत मील शकती है
• फलीओ के जार (वरणी) में दीपगंध के टुकडे रखने से तरह तरहके कीटक दुर रहते है
• कहा जाता है की गाय के गोबरमें लक्ष्मीकां वास है इसलिए तिजोरी में मंदिरमें अलमारीमें और पर्समें श्रध्याभावसे दीपगंध रख शकते है। गायका गोबर अन्टी रेडीओशन होने से हानिकारक वी-किरणो
• दीपगंधकी राख फुलछोडके गमलेमे खाद के रुप डालने से तथा उनके पतो पर छीडकनेसे रोग दूर करनेमें और छोड के विकासमें उपयोगी हो सकती है
दीपगंधकी राख दांत दर्द से दंतमंजन बनाने की पद्धति :
दीपगंधकी राख दांत दर्दऔर सफाइ के लिए असरकारक दंतमंजन बनता है। धुपकी राख लेकर उतनीही मात्रामें सेंधा नमक डाले और कम मात्रामें फुलाइ हुई फीटकडी के पाउडर को अच्छी तरह मिलाकर छालने के बाद इस्तेमाल कर सकते है।
सभी गौप्रेमी लोगो को अनुरोध किया जाता है की गौशाला को स्वनिर्भर बनाने के लिए दीपगंधका महत्व और फायदा ज्यादा से ज्यादा लोगो तक पहुचायेा हम सब दीपगंध का उपयोग नियमित व्यापक रुपसे करे और उसके जरीए परोक्ष रुप से भी गौसेवा कायमें सब जुड़े एसी प्रार्थना।
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